माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन देवी दुर्गा के स्वरुप Maa Brahmacharini की पूजा की जाती है। यह स्वरुप आधात्मिक अनुशासन, तपस्या और अटल devotion को दर्शाती है। इस दिन की पूजा विशेष रूप से सुबह के ब्रह्म मुहूर्त (4:42 से 5:32 एएम) में करनी चाहिए क्योंकि इस समय ऊर्जा का स्तर सबसे अधिक रहता है।
पूजा की तैयारी में सबसे पहले स्वच्छता पर ध्यान दें: पवित्र जल से स्नान करें, हल्के रंग के या सफेद वस्त्र पहनें और मन को शांति से भरें। इसके बाद कलश स्थापना का विशेष महत्व है। यदि पिछले दिन से कलश बना हुआ है तो उसी को जारी रखें, नहीं तो नई मिट्टी की कुम्हारी में तीन परतें मिट्टी लगाकर सात धान्य (जौ, गेहूँ आदि) डालें और पानी से स्नान करायें।
- कलश में गंगा जल, पान, सिक्के, अक्षत (हल्दी के साथ चावल) और दुर्वा घास रखें।
- कलश के बाहर लाल कुमकुम से स्वस्तिक बनायें।
- पाँच आम के पत्ते कलश की गर्दन के चारों ओर रखें और नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर लाल धागे से बांधें।
- शुद्ध घी से अखंड ज्योति जलाएँ; यह ज्योति नवरात्रि के नौ दिन तक निरंतर जलती रहे।
अब आत्म‑पूजा की बारी आती है। माथे पर तिलक लगाएँ, दोनों हाथों में जल लेकर नमन करें और जल को अपने होंठों से चूषें। फिर संकल्प लें – जल को हाथ में लेकर नवरात्रि व्रत का संकल्प जिसमें पूर्ण श्रद्धा और नियती के प्रति निष्ठा शामिल हो।
देवी की मूर्ति या तस्वीर के सामने फूल अर्पित करें, उनके पैरों को शुद्ध जल से धोएँ और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, चीनी) से अभिषेक करें। इसके साथ ही कपूर और शुद्ध गाय के दूध का भी प्रयोग किया जा सकता है।
देवी को नया वस्त्र, नई साड़ी या पाटी पहनाएँ, चंदन का तिलक, कुमकुम, काजल, दुर्वा और बिल्व के पत्ते सजाएँ। फूल, अक्षत, रॉली, चंदन, पान, सुपारी, लौंग आदि अर्पित करें। यह सभी समर्पण और भक्ति का प्रतीक है।

मंत्र, आरती और व्रत कथा
पूजा के दौरान पाँच मुख्य मंत्रों को 108 बार जपना चाहिए। प्रमुख मंत्र है – “ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः”। इसके अतिरिक्त दो प्रमुख स्तुति मंत्र हैं, जो देवी के तपस्यात्मक स्वरुप को स्मरण कराते हैं:
- धधना कर पद्मभ्यं अक्श्मला कमण्डलु – देवी प्रतिक्षा करें, ब्रह्मचारिणी उत्तम स्वरूप में प्रकट हों।
- या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेणा संस्थिता – नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
साथ ही एक विस्तृत स्तोत्र है, जिसका उच्चारण शान्ति, ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति में सहायक माना जाता है। इसे रोज़ाना दो बार पढ़ना फायदेमंद है।
भोग के रूप में पंचामृत को प्रमुख वस्तु रखें और उसके साथ पिस्ता‑आधारित मिठाइयाँ, ताजे फल, खीर या मीठा चावल, शक्कर, मिश्री और पान‑सुपारी प्रस्तुत करें। ये सभी भक्ति के भाव को बढ़ाते हैं और शारीरिक ऊर्जा भी देते हैं।
आरती के समय धूप, दीप और घंटा बजाकर भगवती की स्तुति करें। गाने का चयन सरल भजनों से करें, जैसे “ओंकारा ओम्” या “जै माँ ब्रह्मचारिणी”। अंत में प्रसाद वितरण करें और अखंड ज्योति को निरंतर जलती ही रहने दें।
व्रत कथा में बताया गया है कि सती (शिव की पूर्वप्रेमा) ने पशु‑पक्षी, फल‑भोजन से लेकर केवल बिल्व पत्ते तक तीव्र तपस्या की। अंत में वह पूरी तरह से अन्न‑विराम हो गईं और इस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया। उनकी अडिग भक्ति ने अंततः उन्हें भगवान शिव से मिलवाया। यह कथा आज के उपासकों को समर्पण और धैर्य की सीख देती है।
उस दिन का रंग सफ़ेद है – शुद्धता, शांति और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक। भक्त सफ़ेद वस्त्र, सफ़ेद फूल (जैसे चमेली, कली) और सफ़ेद सजावट के साथ पूजा करते हैं। यह न केवल दृश्य सौंदर्य बढ़ाता है बल्कि मन को भी शांति प्रदान करता है।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा के प्रमुख लाभों में शामिल हैं:
- आंतरिक शांति और मानसिक स्थिरता।
- आध्यात्मिक अभ्यासों में सफलता।
- नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा।
- अविवाहित लोगों के लिये शुभ विवाह की प्रार्थना।
- भक्ति‑समर्पण में वृद्धि।
- धर्म मार्ग में आने वाले बाधाओं का निवारण।
इन सभी कारणों से नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा को विशेष महत्व दिया गया है। सही समय, शुद्ध मन और अनुशासन के साथ इसे करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव अवश्य मिलेंगे।