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कविता: महामारी के समय अपनों को खोने का दर्द असहनीय होता है, लेकिन अभी भी एक विश्वास है कि नया सवेरा फिर से आएगा, इस विश्वास के बारे में लिखी गई यह कविता पढ़ें।


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  • महामारी के समय अपनों को खोने का दर्द असहनीय होता है, लेकिन फिर भी विश्वास है कि नया सवेरा फिर लौटेगा, इस विश्वास के बारे में लिखी गई यह कविता

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चरणजीत सिंह कुकरेजा१८ घंटे पहले

  • प्रतिरूप जोड़ना

उनको संभालो

दिशा को ‘है’ से ‘था’ में बदलना कितना असहनीय है…

मन यह मानने को तैयार नहीं है कि हमारे सुख-दुःख का समाचार, जो दूर रहकर भी हो रहा था, हमारी ओर रूपान्तरित हो गया है, जो इससे चिन्तित थे, ‘था’ के दिन।

सच में महामारी के इस अजीबोगरीब दौर ने जोर पकड़ लिया है, जिसे देखकर न जाने न जाने कितने अपनों ने…

ये सच है कि माहौल सूना है, दर्द की ये काली रातें बड़ी बुरी हैं…. हालाँकि, हमें अपने आप में यह विश्वास पैदा करना होगा कि हर दर्द के पीछे खुशी का स्थान होता है। और हर रात निश्चित रूप से एक सुबह होती है।

उन सभी को देखकर, हम एक सुनहरी सुबह में प्रत्येक आशावान व्यक्ति के दरवाजे पर दस्तक देंगे … और हम विश्वास दिलाते हैं कि वे सभी जो भगवान के नेतृत्व में कलवारी से गुजरे हैं, जिन्होंने अपना सारा प्यार ‘है’ रखने के लिए समर्पित कर दिया है। … और हांफने की सांसों को उनमें जीने के लिए प्रोत्साहित किया है और उन्हें प्रोत्साहित किया है।

यह निश्चित रूप से सच है कि हम कई प्रयास कर सकते हैं और कभी भी ‘था’ को ‘है’ में नहीं बदल सकते … ‘…. डूबते जीवन को बचाने के लिए हमारे पुण्य कर्मों को देखकर ‘था’ भी मुस्कुराएगा, हमारे उपयोगी कर्म, हम मनुष्य को मानवता के करीब लाएंगे…..

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